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E-ISSN: 2582-8010
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Volume 6 Issue 10
October 2025
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पर्यावरण संरक्षण में पारंपरिक आदिवासी ज्ञान की भूमिका-राजस्थान के संदर्भ में
Author(s) | कमलेश कुमार मीणा |
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Country | India |
Abstract | राजस्थान जैसे अर्ध-शुष्क एवं मरुस्थलीय राज्य में पर्यावरण संरक्षण सदियों से स्थानीय समुदायों एवं आदिवासी समूहों की जीवनशैली, संस्कृति और पारंपरिक ज्ञान से गहराई से जुड़ा रहा है। बिश्नोई समाज द्वारा वन एवं वन्यजीवों की रक्षा, भीलों एवं मीणाओं के जल-संरक्षण पद्धतियाँ, तथा स्थानीय ग्रामीण समुदायों द्वारा पारंपरिक कृषि, चराई और औषधीय पौधों के उपयोग जैसे उपाय पर्यावरणीय संतुलन के सशक्त उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। आधुनिक विकास और औद्योगीकरण की चुनौतियों के बीच यह पारंपरिक/आदिवासी ज्ञान सतत विकास और जलवायु परिवर्तन से निपटने का व्यावहारिक मार्ग सुझाता है। इस शोध-पत्र में राजस्थान के पारंपरिक पर्यावरण संरक्षण उपायों का अध्ययन किया गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि स्थानीय ज्ञान-संपदा आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ मिलकर न केवल जैव-विविधता के संरक्षण में सहायक हो सकती है, बल्कि सामाजिक-आर्थिक सतत विकास का आधार भी बन सकती है |
Keywords | राजस्थान, पर्यावरण संरक्षण, आदिवासी ज्ञान, पारंपरिक पद्धतियाँ, बिश्नोई समाज, जल-संरक्षण, जैव-विविधता, सतत विकास |
Published In | Volume 6, Issue 10, October 2025 |
Published On | 2025-10-07 |
Cite This | पर्यावरण संरक्षण में पारंपरिक आदिवासी ज्ञान की भूमिका-राजस्थान के संदर्भ में - कमलेश कुमार मीणा - IJLRP Volume 6, Issue 10, October 2025. |
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