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दलित अस्मिता और अंबेडकरवादी चिंतन : समकालीन हिंदी कहानी का परिप्रेक्ष्य

Author(s) पूनम, डॉ. चंद्रभान सिंह यादव
Country India
Abstract यह शोध समकालीन हिंदी कहानी में दलित अस्मिता और अंबेडकरवादी चिंतन के अंतर्संबंध का विश्लेषण करता है। अध्ययन का उद्देश्य यह समझना है कि किस प्रकार समकालीन कहानीकारों ने जातिगत शोषण, सामाजिक अन्याय और आर्थिक विषमता के खिलाफ दलित अनुभवों को कथा के केंद्र में स्थापित किया है। डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर के शिक्षा, आत्मसम्मान और संगठन के सिद्धांत इन कहानियों में वैचारिक आधार के रूप में उभरते हैं, जो पात्रों की सोच, क्रिया और संघर्ष को दिशा प्रदान करते हैं। प्राथमिक स्रोत के रूप में 2000 के बाद प्रकाशित चुनिंदा कहानियों और द्वितीयक स्रोत के रूप में आलोचनात्मक ग्रंथों, आत्मकथाओं और शोध-पत्रों का उपयोग किया गया है। गुणात्मक पद्धति और सामग्री विश्लेषण के माध्यम से कथ्य, पात्र-निर्माण, भाषा-शैली और प्रतीकों का अध्ययन किया गया। निष्कर्ष बताते हैं कि दलित अस्मिता केवल जातिगत पहचान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मसम्मान, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय की व्यापक चेतना का प्रतिनिधित्व करती है। अंबेडकरवादी चिंतन ने इन कहानियों को न केवल वैचारिक गहराई दी है, बल्कि उन्हें सामाजिक परिवर्तन का उपकरण भी बनाया है। इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि समकालीन हिंदी कहानी दलित विमर्श को साहित्यिक और सामाजिक दोनों स्तरों पर मजबूती प्रदान कर रही है, जिससे यह साहित्य एक सशक्त सांस्कृतिक हस्तक्षेप के रूप में स्थापित हो रहा है।
Keywords दलित अस्मिता, अंबेडकरवादी चिंतन, समकालीन हिंदी कहानी, सामाजिक न्याय, जातिगत भेदभाव, साहित्यिक प्रतिरोध, शिक्षा और समानता ।
Published In Volume 6, Issue 4, April 2025
Published On 2025-04-05
Cite This दलित अस्मिता और अंबेडकरवादी चिंतन : समकालीन हिंदी कहानी का परिप्रेक्ष्य - पूनम, डॉ. चंद्रभान सिंह यादव - IJLRP Volume 6, Issue 4, April 2025.

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