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E-ISSN: 2582-8010     Impact Factor: 9.56

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भारतीय सिनेमा में जनजातीय चित्रण; ऐतिहासिक और सामाजिक संदर्भ

Author(s) प्रियंक कुमार रोकड़े, डॉ. गीता चौधरी
Country India
Abstract भारत में आदिवासी / जनजाति समुदाय को प्राचीन काल से ही अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे- "वनवासी", "गिरिजन", "आटविक" आदि । ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में आदिवासी समुदायों को ट्राइबल (Trible) कहा जाने लगा अंग्रेजों ने भी इन्हें प्राचीन और मध्यकाल के शासको के भांति अलग-थलग ही रखा। स्वतंत्रता के बाद ही भारत सरकार द्वारा उन्हें विशेष दर्जा दिया गया और संवैधानिक रूप से अनुसूचित जनजातीय के रूप में मान्यता दी।
आदिवासी या जनजातीय शब्द भारत के आदिवासी समुदायों की पहचान और उनके अधिकारों के संघर्ष का प्रतीक है। कुछ लोग जनजातीय शब्द का विरोध करते हैं क्योंकि उनका मानना है कि यह शब्द आदिवासी समुदाय को मुख्य धारा से अलग करता है । तो वहीं कुछ आदिवासी नेताओं और बुद्धिजीवीयों द्वारा आदिवासी शब्द को प्राथमिकता दी जाती हैं क्योंकि यह शब्द उनके मूल निवासी होने की पहचान को स्थापित करता है। यह शब्द प्रशासनिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ में व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है। हालांकि इस शब्द का प्रयोग और उसकी व्याख्या अलग-अलग समूह द्वारा अलग-अलग ढंग से की जाती है। भारतीय सिने जगत के भी निर्माता - निर्देशकों ने फिल्मों में आदिवासियों की सभ्यता, संस्कृति, परंपराओं और रीति - रिवाज को अपने-अपने दृष्टिकोण से प्रदर्शित किया है।
Keywords भारतीय, सिनेमा, जनजातीय, चित्रण, सामाजिक
Field Arts
Published In Volume 6, Issue 10, October 2025
Published On 2025-10-17
Cite This भारतीय सिनेमा में जनजातीय चित्रण; ऐतिहासिक और सामाजिक संदर्भ - प्रियंक कुमार रोकड़े, डॉ. गीता चौधरी - IJLRP Volume 6, Issue 10, October 2025.

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