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E-ISSN: 2582-8010     Impact Factor: 9.56

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संस्कृत साहित्य में रस-योजना

Author(s) बिनता दास, डॉ. सुमित कुमार शर्मा
Country India
Abstract रस काव्य का प्रधान तŸव है । आचार्य भरत रस सूत्र के प्रवर्Ÿाक रहे हैं । भरतमुनि ने रस को काव्य की आत्मा कहा है । रस के बिना किसी अर्थ का प्रवर्Ÿान काव्य में नहीं हो सकता। सहृदयों के हृदय में आनन्द की अनुभूति को उद्भावित करना ही काव्य का मुख्य लक्ष्य होता है । इस आनन्दमय अनुभूति को रस कहा जाता है । पंडितराज जगन्नाथ ने अपने प्रसिद्ध काव्य-शास्त्रीय ग्रंथ का नाम ही ‘रसगंगाधर’ रखा है । उन्होंने काव्य का लक्षण कहा - ‘रमणीयार्थप्रतिपादकः शब्दः काव्यम्। यहाँ पर पण्डितराज का रमणीयार्थ से अभिप्राय है - रसयुक्त अर्थ । तैतिरीय उपनिषद् में परब्रह्म को रस कहा गया है क्योंकि जीव उसको प्राप्त कर आनन्द का अनुभव करता है।
Published In Volume 4, Issue 9, September 2023
Published On 2023-09-08
Cite This संस्कृत साहित्य में रस-योजना - बिनता दास, डॉ. सुमित कुमार शर्मा - IJLRP Volume 4, Issue 9, September 2023.

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