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E-ISSN: 2582-8010
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Volume 6 Issue 4
April 2025
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पुस्तकालय विज्ञान के पाँच सूत्रों की उपादेयता
Author(s) | कन्या |
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Country | India |
Abstract | देश के विभिन्न भागों में ज्ञान विकास के लिए तथा छात्र - छात्राओं एवं अन्य उपकर्त्ताओं के लिए ज्ञान के भण्डार से परिचित कराने के लिए प्रो० एस०आर० रंगनाथन द्वारा वर्ष १९२८ मे पुस्तकालय विज्ञान के पांच सूत्र को प्रतिपादन किया गया। प्रस्तुत शोध पत्र में पुस्तकालय विज्ञान के सिद्धान्तों का उपयोग करते हुए पुस्तकालयों की सेवा एवं सग्रह, संरक्षण इत्यादि का उल्लेख किया गया है प्रस्तावना- डॉ. रंगनाथन ने अपने विशिष्ठ आदर्शक सिद्धान्तों में नियम, सिद्धान्त एवं सूत्र को स्थान दिया है प्रत्येक विषय के कुछ आधारभूत सूत्र होते हैं, जिन्हें उस विषय के 'विषय का नियम कहा जाता है' उस विषयों के सभी खण्डों, उपखण्डों, शाखाओं द्वारा स्वीकृत तथा मान्यता प्राप्त होते है इसी प्रकार ग्रंथालय विज्ञान के भी अपने आधार भूत सूत्र है क्यों कि ग्रंथालय विज्ञान भी अन्य विषयों की भांति एक स्वतंत्र विषय के रूप में उभर कर सामने आ गया है। भारतीय ग्रंथालय आन्दोलन के प्रवर्तक डॉ० एस०आर० रंगनायन ने ग्रंथालय विज्ञान के पांच सूत्रों का प्रतिपादन सन् १९२८ में किया ग्रंथालय विज्ञान के सूत्र ग्रंथालय विज्ञान के मूलभूत सूत्र है। ग्रंथालय विज्ञान के पाँच सूत्र- प्रथम सूत्र : पुस्तकें उपयोग के लिए है प्रथम सूत्र कहता है कि पुस्तके उपयोग के लिए है इसलिए ग्रंथालय भीड-भाड़ से दूर, शान्त एवं खुले वातावरण में होना चाहिए जहॉ पर पाठक सरलतम् से पहुंच सके। पुस्तकालय के खुलने और बंद होने का समय उपयोगकर्त्ताओं के समय के अनुकूल नहीं है तो पुस्तकालय सामग्री का अत्याधिक उपयोग सम्भव नहीं होगा परन्तु जब पुस्तकालय के खुलने और बंद होने का समय उपयोगकर्ताओं के अनुकूल होगा तो वह सुविधानुसार उसकी पाठ्य साम्रगी का भरपूर उपयोग कर लाभान्वित हो सकेगें। ग्रंथालय की सफलता तथा उसके संग्रह विशेष उपयोग पूर्णतयः उसमें कार्यरत कर्मचारियों पर निर्भर रहता है, कर्मचारी शिक्षित प्रशिक्षित, विद्धान, परिश्रमी, कर्मठ, ईमानदार तथा पुस्तक प्रेमी होनी चाहिए। नियम कम से कम सरल तथा वैधानिक भाषा में होने चाहिए। नियमों के द्वारा अधिकाधिक पाठकों को अधिकाधिक सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए जिससे पुस्तकें के उपयोग को बढ़ावा मिल सके। ग्रंथालय में जो नये प्रलेख आते है वे पाठकों के उपयोग में आना आवश्यक है इसके लिये क्पेचसंल त्बा प्रदर्शित करना आवश्यक है। द्वितीय नियम : प्रत्येक पाठक को उसकी अभिष्ट पुस्तक मिले उपभोक्ता सर्वे द्वारा पाठकों की आवश्कता को जाना जा सकता है पुस्तक चयन एवं क्रय नीति पाठकों की आवश्यकतानुसार होनी चाहिए। पाठक ग्रंथालय का उपयोग ग्रंथालय कर्मचारियों की सहायता से ही कर सकता है। कर्मचारी सदैव पाठकों के सहायक सिद्ध होने चाहिए तभी प्रत्येक पाठक को उसकी अभीष्ट पुस्तक मिल सकती है। इसी प्रकार सूक्ष्म प्रलेखों का ज्ञान पाठकों को कराने के लिए ग्रंथालय कर्मचारियों का कर्त्तव्य है कि वे ग्रंथालय में उपलब्ध स्त्रोतों जैसे- निर्देशिकाओं, सन्दर्भ-उपकरणों, सन्दर्भ ग्रंथ सुचीयों तथा सेवाओं द्वारा पाठकों को उनके वांछित साहित्य को उपलब्ध कराने में सहायता दें। ग्रंथालय में निबद्ध प्रवेश प्रणाली समस्त प्रलेखों का सर्वागीण वर्गीकरण तथा सूचीकरण, विषयगत शैल्फ व्यवस्थापन, प्रलेखों का शैल्फ पर समुचित रखरखाव आदि होना चाहिए। ग्रंथालयों को परस्पर संसाधनों की सहभागिता प्रोत्साहित करता है ताकि प्रत्येक पाठक को उसकी अभीष्ट पुस्तक / सूचना मिल सके। तृतीय सूत्र: प्रत्येक पुस्तक को उसका पाठक मिले प्रत्येक पुस्तक को उसका पाठक मिले यह एक कठिन कार्य है, क्योंकि पुस्तक एक निर्जीव वस्तु है जो स्वयं चलकर अपने पाठक तक नहीं पहुँच सकती । अतः पुस्तक और पाठक के मध्य सम्बंध स्थापित करना ग्रंथालय कर्मचारियों का कर्तत्य है । पुस्तकें उसी भाषा, विषय तथा स्तर की चयन करनी चाहिए जिनकी आवश्यकता हो, जो पुस्तकें कभी-कभी उपयोग में आती है उनको अन्तः ग्रंथालय आदान-प्रदान पर मंगाया जा सकता है। निर्बाद्ध प्रवेश प्रणाली में पुस्तकें खुली अल्मारियों/रैक्स में होती है पाठक, बिना किसी रोक-टोक के पुस्तकों तक जा सकता है। पाठक का पुस्तकों तक सीधा सम्बंध स्थापित होता है। प्रत्येक ग्रंथालय सूची सक्षम, व्याख्यात्मक, अद्यतन होनी चाहिए। सूची में सभी प्रकार की प्रविष्टियाँ-अन्तनिर्देशी, विषय - विश्लेषी प्रविष्टियाँ, लेखक परक प्रविष्टियाँ, विषय परक प्रविष्टियाँ, ग्रंथमाला परक प्रविष्टियाँ होनी चाहिए । पुस्तकालय नियम सरल एवं पाठकों की सुविधा को ध्यान में रखकर बनाये जाने चाहिए । नियम लचीलें होने चाहिए जिसे आवश्यकतानुसार उसमें सरलता से संशोधन किया जा सके। चतुर्थ नियम : पाठक का समय बचाओ डॉ॰ रंगनाथन के अनुसार - "यह पुस्तकालय प्रशासन में सुधारों को जन्म देने के प्रति प्रशासन में सुधारों को जन्म देने के प्रति उत्तरदायी है। भविष्य में इसमें और भी अधिक सुधारों को प्रभावशाली करने हेतु महान सम्भात्यता है” एक वैज्ञानिक भली-भाँति निर्मित सक्षम एवं अद्यतन पुस्तकालय सूची पाठकों तथा कर्मचारियों का समय बचानें में सहायक होती है। पाठकों के समय की बचत का महत्वपूर्ण साधन संदर्भ सेवा है। पुस्तकालय एवं अध्ययन सामग्री के उपयोग में व्यक्तिगत सहायता प्रदान कर पाठकों की समय की बचत की जाती है। पुस्तक के निर्गम-आगम की प्रक्रिया को परिसंचरण कहते हैं, आधुनिक पुस्तकालयों में परिसंचरण कहते है। आधुनिक पुस्तकालयों में पत्रक एवं यांत्रिक परिसंचरण पद्धतियों का उपयोग कर पाठकों एवं कर्मचारियों के समय की बचत की जाती है । पंचम नियम : पुस्तकालय एक वर्द्धनशील संस्था है एक विकासशील संगठन नयी सामग्री ग्रहण करता है, पुरानी सामग्री का त्याग करता है, अपने आकार में परिवर्तन करता है और नयी सूरत तथा स्वरूप ग्रहण करता है। भवन का निर्माण प्रमाणीय व शुष्क विधियों के आधार पर किया जाना चाहिए । पुस्तकों की संख्या में होने वाली वृद्धि को समाहित करने के लिए संग्रह - कक्ष में वृद्धि की अधिक गुंजाइस होनी चाहिए। पुस्तकालयों की पूर्ण विकसित अवस्था के उपरान्त पुस्तकों की संख्या की वृद्धि को रोकने हेतु अनुपयोगी पुस्तकों को निष्कासित कर पुस्तकालय के विकास क्रम को बनाये रखा जा सकता है। पुस्तकालय की पुस्तकों की संख्या में निरन्तर वृद्धि और उनमें समाहित नवीन विषयों को उपयुक्त वर्गीकरण क्रम में व्यवस्थित रखने के लिए व्यापक और ग्राह्वयतायुक्त वैज्ञानिक वर्गीकरण पद्धति को अपनाया जाना चाहिए। पुस्तकालय कर्मचारियों की प्रकृति एवं कार्यक्षमता के अनुसार ही विभिन्न सेवाओं में उनका उपयोग किया जाना चाहिए। उनमें पारस्परिक सहयोग एवं एकता की भावना पुस्तकालय के लिए हितकर होगी। उपसंहार- डॉ० एस०आर०रंगनाथन द्वारा प्रतिपादित ग्रंथालय विज्ञान के पाँच सूत्र पाठक पुस्तकों एवं कर्मचारियों को दृष्टि में रख कर बनाया गया है इन पाँच नियमों के प्रतिपादित होने से ग्रंथालय विज्ञान निरन्तर प्रगति की ओर बढ़ रहा है उपभोक्ताओं की सूचना विषयक आवश्यकतों की पूर्ति हेतु ग्रंथालय नियमों द्वारा पूर्ण रूप से सहयोग प्रदान की जाती है। इन सूत्रों की धारणा एवम् प्रतिपादन का कार्य ग्रंथालय के महत्व को ही मूल स्थान में रख कर किया गया है। ग्रंथालय विज्ञान के पांच प्रतिपादित सूत्र डॉ० रंगनाथन की तीव्र अन्तर्दृष्टि, गहन अद्यपन एवं चिन्तनशील, विश्लेषण मस्तिष्क का प्रतिफल है। |
Keywords | . |
Field | Arts |
Published In | Volume 6, Issue 2, February 2025 |
Published On | 2025-02-15 |
Cite This | पुस्तकालय विज्ञान के पाँच सूत्रों की उपादेयता - कन्या - IJLRP Volume 6, Issue 2, February 2025. |
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10.70528/IJLRP
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