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E-ISSN: 2582-8010
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Volume 6 Issue 4
April 2025
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बच्चों के विरुद्ध अपराध और आधुनिक प्रवृतियाँः एक समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य
Author(s) | Braj Mohan |
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Country | India |
Abstract | बाल अपराध किशोर अपराध का प्रशस्त प्रवेश द्वार है, यही अपराध की प्रथम सीढी है। जहाँ से व्यक्ति आपराधिकता का प्रथम पाठ पढ़ता है और आपराधिक कृत्य करने में दक्षता हासिल करता है। प्रत्येक व्यक्ति की कुछ इच्छाएँ व आवश्यकताएँ होती है। जिन्हें वह समाज द्वारा प्रचलित व मान्य तरीकों से पूरा करना चाहता है लेकिन कभी-कभी वे इच्छाएँ सर्वमान्य तरीके से पूरी नहीं हो पाती ऐसी स्थिति में व्यक्ति की वो इच्छाएँ या तो दबी रह जाती हैं या व्यक्ति उन्हें पूरा करने के लिए समाज विरोध्ी व्यवहार या तरीके से पूरा करता है जो कि अपराध की श्रेणी में आ जाता है और वही व्यवहार व्यक्ति को अपराधी बना देता है। ‘‘राज्य द्वारा निर्धरित आयु समूह 16 से 17 वर्ष के बच्चे द्वारा किये गये व्यवहार को ‘बाल अपराध’ कहा जाता है।’’ बच्चों के विरुद्व होने वाले अपराध को आधुनिक प्रवृति के रूप में ‘‘शारीरिक और मानसिक दुर्व्यवहार, चोट, अपेक्षा या अशिष्ट व्यवहार एवं यौन दुर्व्यवहार को माना जा सकता है। बच्चों के विरुद्व यह अपराध घर, स्कूलों, अनाथालयों, आवासग्रहों, सडकों पर, कार्यस्थल पर, जेल एवं सुधार गृहों आदि में कहीं भी हो सकते हैं। बचपन में इस प्रकार की हिंसा के अनुंभव के कारण बच्चों में पूरी जिन्दगीं के लिए मानसिक व भावनात्मक विकारों में वृद्वि हो जाती है। जिससे उनका व्यक्तित्व विकास अवरुद्व हो जाता है। ‘‘आज के बच्चे कल का भाविष्य हैं। जिनके कंधें पर समाज की पूरी जिम्मेदारी है। अगर हमारी अनदेखी की वजह से यह कंधें कमजोर पड जायेगें तो यह समाज के लिए कतई हितकारी नहीं होगा।’’ प्रस्तुत शोध बच्चों के प्रति होने वाले अपराधें के आधुनिक स्वरूपों को उजागर करने का एक सार्थक प्रयास है। |
Keywords | बाल अपराध, हिंसा, दुर्व्यवहार, सुधार गृह, नैतिकता, असुरक्षा, अश्लीलता, शोषण, उत्पीड़न, श्रमिक, अपहरण, मजदूरी, तस्करी, उपभोग। |
Field | Arts |
Published In | Volume 6, Issue 1, January 2025 |
Published On | 2025-01-20 |
Cite This | बच्चों के विरुद्ध अपराध और आधुनिक प्रवृतियाँः एक समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य - Braj Mohan - IJLRP Volume 6, Issue 1, January 2025. |
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10.70528/IJLRP
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